France ki kranti ka europe par kya prabhav pada
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फ्रांसीसी क्रांति | हिंदी | इतिहास | ( French Revolution | hindi | history | )
फ्रांस की क्रांतिकारी( France Revulation ) :
फ्रांस की क्रांति प्रथम नहीं थी परंतु प्रभावों की दृष्टि से यह सर्वोपरि थी फ्रांस की क्रांति ने संसार पर अमेरिका की क्रांति से अधिक प्रभाव डाला था| 18 वीं शताब्दी में फ्रांस में निरंकुश और शिक्षा कारी सम्राटों का शासन था फ्रांस व्यवसाय और व्यापार की दृष्टि से एक उन्नतशील देश था उत्तरी अमेरिका का एक विशाल भूभाग उसके अधीन था पश्चिमी द्वीप समूह और अफ्रीका में मेडागास्कर के टापू पर भी उसका आधिपत्य था इसके साथ ही साहित्य और कला के क्षेत्र में भी चांस उन्नति के शिखर पर था फ्रांस के राजा का दरबार शान शौकत से परिपूर्ण समस्त यूरोप के लिए आकर्षण का केंद्र था परंतु जनता की दशा बड़ी सोचनीय थी|जनसाधारण का जीवन कष्टों से भरपूर था इसका अंदाजा एक उदाहरण से सहज रूप से लगाया जा सकता है|"एक बार फ्रांस कि राजा और रानी की सवारी के पीछे भूखी और नंगी जनता और रोटी रोटी ( ब्रेड) के नारे लगाते हुए दौड़ रही थी|" तब परिस्थितियों का सही ज्ञान न होने पर रानी ने कहा कि "यदि रोटी ( ब्रेड) नहीं मिलती तो केक क्यों नहीं खा लेते |"
इससे यह ज्ञात होता है कि तत्कालीन फ्रांसीसी राजा कितने योग थे और विकेट आर्थिक संकट देश एवं समाज पर छाया हुआ था|इन परिस्थितियों के परिणाम स्वरुप 1789 ईस्वी में फ्रांस में क्रांति प्रारंभ हुई जिसने शीघ्र ही भीषण रूप धारण कर लिया फ्रांस की क्रांति के समय लुई सोलहवा राजा थे |
वह आयोग बिलासी था अनुभवहीन था उसकी पत्नी मेरी एंटोनियो धनी देश ऑस्ट्रेलिया की राजकुमारी थी जो अत्यंत जिद्दी एवं फिजूल खर्च करने वाली थी निरंतर चलते युद्ध में बहुत अधिक धन व्यय होने से राजकोष रिक्त हो गया जनता इसका कारण राजा की अयोग्यता को ही समझती थी|अतः फ्रांस की क्रांति ने निरंकुश राजतंत्र का अंत कर दिया और फ्रांस में लोकतंत्र शासन की स्थापना की गई इस क्रांति में फ्रांस का सम्राट लुई सोलहवा रानी मेरी एंटोनियो तथा उनके अनगिनत साथियों को गुलोटीन द्वारा मृत्यु के घाट उतार दिया गया|14 जुलाई 17 89 ईसवी की यह घटना निरंकुश शासन के पतन की श्रृंखला की प्रथम कड़ी थी|"आज भी फ्रांस में 14 जुलाई एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है इस क्रांति के फलस्वरूप संपूर्ण यूरोप लगभग 25 वर्ष तक युद्ध की अग्नि में जलता रहा था" | इससे फ्रांस की क्रांति मैं बहुत प्रभाव पड़ा साथ यूरोप मैं इसका बहुत प्रभाव पड़ा था ( This had a great impact in the French Revolution as well as in Europe )
इस प्रकार यह रक्तपात जो 14 जुलाई 1789 ईस्वी को बास्तील के पतन से प्रारंभ हुआ था 18 जून 1815 ईस्वी को वाटरलू के युद्ध के साथ समाप्त हुआ इसे फ्रांस की महान क्रांति जाता है|
फ्रांसीसी क्रांति के कारण थे क्या( What were the reasons for the french revolution )
फ्रांस की क्रांति के कारण:-
1789 ई ० कि फ्रांस की क्रांति संसार की महानतम पटना थी इस क्रांति के समय फ्रांस की सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक दशा अत्यंत सोचनीय एवं दयनीय थी फ्रांस के चारों ओर अन्याय अराजकता तथा शोषण का वातावरण छाया हुआ था जनता इस स्थिति से ऊब चुकी थी और उसका रोष फ्रांस की क्रांति के रूप में फूट पड़ा फ्रांस की क्रांति के लिए उत्तरदाई कारणों का वर्णन निम्न है|
1- सामाजिक कारण
1- पादरी वर्ग :- फ्रांस की समाज का यह प्रमुख तथा प्रथम वर्ग था| इस वर्ग में कैथोलिक चर्च की उच्च पादरी तथा उच्च धर्म अधिकारी व्यक्ति आते हैं इनकी संख्या लगभग एक लाख तीस हजार थी यह लोग बड़े धनवान और बड़ी जागीरो के मालिक थे धन की अधिकता से इस वर्ग का इतना अधिक चरित्र एवं नैतिक पतन हो गया था कि यह जनता की घृणा का केंद्र बन गई उच्च पादरी वर्ग को विशेष विशेष अधिकार भी प्राप्त था फ्रांस में राज्य के बाद चर्च ही सबसे अधिक प्रभावशाली था |
2- कुलीन वर्ग:- फ्रांस में दूसरा वर्क कुली नो का था इस वर्ग में बड़े सामंत उच्च प्रशासनिक अधिकारी तथा राज्य परिवार के सदस्य शामिल थे यह वर्ग राज्य श्रेय क साथ-साथ विशेष अधिकारों का उपभोग करने में बीएफ था इनकी संख्या ढाई करोड़ की आबादी में मात्र चार लाख थी जबकि राज्य की चौथाई भूमि पर इनका अधिकार था यह अपने विशेष अधिकारों का उपयोग जनसाधारण के शोषण के लिए भी करते थे राज्य सेना चर्च सभी के पद के लिए सुरक्षित थे यह वर्ग सभी प्रकार के करो से मुक्त था और सुख एवं विलासिता का जीवन व्यतीत कर रहा था इस वर्ग के प्रति जनता का अत्यधिक आक्रोश होना स्वभाविक ही था |
3- किसान वर्ग:- फ्रांस की जनसंख्या में किसानों की संख्या लगभग 80% थी इनका जीवन स्तर सबसे निम्न था अधिकांश किसान भूमिहीन थे तथा केवल मजदूरी से ही जीवन यापन करते थे जो किसान कुछ संपन्न थे उनके पास भी भूमि बहुत कम थी यह लोग अपने जानवरों को ना तो घास के मैदानों में चढ़ा सकते थे और ना ही जंगल से लकड़ी काटकर ही ला सकते थे यह लोग करो के बोझ से दबे हुए थे जमीदार इनसे उपहार लेता था चर्च उनकी आमदनी का 1/10 भाग लेता था तथा राज्य भी इनसे भारी कर वसूल तथा इस प्रकार अपनी दयनीय आर्थिक स्थिति के कारण यह वर्ग भी असंतुष्ट था |
2- राजनीतिक कारण
1- निरंकुश शासन:- फ्रांस के स्वेच्छा चारी तथा निरंकुश थे वीर राजा की देवी अधिकारों के सिद्धांत में विश्वास करते थे उन्होंने जनसाधारण के सुख-दुख हित अहित पर कभी ध्यान नहीं दिया और अपनी इच्छा के अनुसार ही कार्य की जनता पर नए कर लगाए और वसूले गए धन को विलासिता के लिए उपयोग किया अतः जनता निरंकुश शासन से उड़ गई और क्रांति के माध्यम से निरंकुश शासन को उखाड़ फेंकने के लिए एकजुट हो गई |
2- सैनिक असंतोष:- फ्रांस की सैनिक युद्ध में लगातार लगे रहने के कारण रक्त पात से उठ चुकी थी और उनकी दशा अत्यंत सोचनीय हो गई थी इस प्रकार सैनिक असंतोष भी फ्रांस की राज्य क्रांति का प्रमुख कारण बना|
3- दोषपूर्ण शासन प्रबंध:- फ्रांस का शासन प्रबंध अत्यंत दुश्मन था वहां पर प्रथक प्रथक न्यायालय और कानून थे फ्रांस में कुलीन वर्ग तथा कैथोलिक चर्च के पादरी को विशेषाधिकार प्राप्त थे और वे इन अधिकारों का दुरुपयोग जनता के शोषण के लिए करते थे जनता के लिए समानता स्वतंत्रता तथा मौलिक अधिकारों की कोई व्यवस्था नहीं थी अतः जनता ने असंतुष्ट होकर क्रांति का आह्वान कर दिया|
3- आर्थिक कारण
1- रिक्त राजकोष:- फ्रांस का शासक लुई सोलहवां अत्यंत विलासिता फ्रांस की सरकार दरबार की शान शौकत ठाट बाट तथा युद्ध पर मनमाने ढंग से धन व्यय करती थी इसका परिणाम यह निकला कि राजकोष रिक्त हो गया और जनता पर करो का भार बढ़ता गया
2- जनता का आर्थिक शोषण:- फ्रांस की सामान्य जनता करो कि भाड़ से दब चुकी थी जनता का आर्थिक शोषण किया जा रहा था राजदरबार तथा उच्च श्रेणी के व्यक्ति जनता से बड़ी निर्दयता पूर्वक धन वसूल करते थे इस आर्थिक शोषण कारण फ्रांस की जनता क्रांति के लिए कटिबद्ध हो गई
3- शिल्प कारों की बेकारी:- औद्योगिक क्रांति के परिणाम स्वरुप फ्रांस में मशीनों का प्रयोग अधिक बढ़ गया था जिसके कारण अनेक शिल्पकार बेकार हो गए थे बेकारी ने उनके हृदय में असंतोष के भाव उत्पन्न कर दिए|
4- दार्शनिकों का प्रभाव:- फ्रांस के महान लेखकों और दार्शनिकों अंकों के विचारों ने जनता में जागरूकता उत्पन्न करके उनके विचारों को आंदोलित कर दिया था उनमें मांटेस्क्यू, वॉल्टियर, रूसो, जैसी दार्शनिकों का नाम प्रमुख रूप से लिया जा सकता है इन बुद्धिजीवियों के विचारों से प्रभावित होकर जनता प्राचीन परंपराओं को तोड़ने के लिए एकजुट होकर क्रांति की ओर उन्मुख हो गई
प्राचीन एवं मध्यकालीन प्रमुख युद्ध
1 . हाइस्पीज का युद्ध (326 ई० पू०): इस युद्ध में सिकंदर ने राजा पेरू को पराजित किय
2. कलिंग युद्ध (261 ई० पू०): इस युद्ध मेंं अशोक ने कलिंग के राजाओं के राजा को पराजित किया |
3. रावण का युद्ध (712 ई०): इस युद्ध में मोहम्मद बिन कासिम ने संधि के दाहिर को पराजित कियाा|
4. पेशावर का युद्ध (1001 ई०): इस युद्ध में महमूद गजनी ने राजा जयपाल को हराया
5. तराइन का प्रथम युद्ध (1191 ई०): इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को पराजित किया
6. तराइन का द्वितीय युद्ध (1192 ई०):इस युद्ध में मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को पराजित किया|
7. चंदावर का युद्ध (1194 ई०): इस युद्ध में मोहम्मद गोरी ने जयचंद को पराजित किया|
8. पानीपत का प्रथम युद्ध (21 मार्च, 1526 ई०): बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच लड़ा गया इसमें बाबर की विजय हुई|
9. खानवा का युद्ध(17 मार्च, 1527 ई०): बाबर एवं राणा सांगा के बीच में बाबर की विजय हुई|
10. चंदेरी का युद्ध (1528 ई०): बाबर और मोदिनी राय की मध्य बाबर की विजय हुई|
11. घाघरा का युद्ध (6 मई, 1529 ई०): बाबर और महमूद लोदी के मध्य बाबर की विजय|
12. दोराहा का युद्ध (1532 ई०): इस युद्ध में हिमायू ने महमूद लोदी को पराजित किया|
13. चौसा का युद्ध (1539 ई०): हिमायू एवं शेरशाह सूरी के मध्य , इसमें शेरशाह की विजय हुई|
14. कन्नौज में बिलग्राम का युद्ध (1540 ई०): हिमायू और शेरशाह सूरी के मध्य सिरसा बिजाई हिमायू पूर्णतया परास्त|
15. मछीवाड़ा का युद्ध (1555 ई०): हिमायू एवं अफगान सालार के मध्य हिमायू की विजय हुई|
16. सरहिंद का युद्ध (1555 ई०): हिमायू और सिकंदर शाह सूरी के बीच, हिमायू की विजय|
17. पानीपत का द्वितीय युद्ध (1556 ई०): अकबर एवं हेमू के बीच अकबर की विजय हुई|
18. ताली कोटा का युद्ध (1565 ई०): इस युद्ध में बहमनी साम्राज्य के 4 मुस्लिम राज्यों ने सम्मिलित रूप से विजयनगर साम्राज्य को हराया| इस युद्ध को बन्नी हड्डी के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है|
19. हल्दीघाटी का युद्ध (1576 ई०): मुगल सेनापति मानसी और राणा प्रताप के बीच लड़ा गया जिसमें मुगलों की विजय हुई|
20. अहमदनगर का युद्ध (1600 ई०): अकबर की सेना और गोंडवाना की रानी की चांद बीबी के मध्य , इसमें अकबर की विजय हुई|
21. असीरगढ़ का युद्ध (1601 ई०): अकबर और मियां बहादुर के मध्य अकबर की विजय हुई| यह अकबर का अंतिम सैन्य अभियान था|
22. धर्मत का युद्ध (1658 ई०): औरंगजेब और धारा शिकोह के मध्य लड़ा गया इसमें औरंगजेब की विजय हुई|
23. छत्तीसगढ़ का युद्ध(1658 ई०): औरंगजेब और दारा शिकोह। के मध्य , इसमें भी औरंगजेब की विजय
24. फ्रांसीसियों ने अपनी पहली कोठी 1668 ईस्वी में सूरत में स्थापित की
25. लुई चौदहवे के मंत्री कॉल्वर्ड द्वारा 1664 ईस्वी में फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई
26. फ्रांसीसियों ने पांडिचेरी की नीव 1673 ईस्वी में फ्रैंक मार्टिन द्वारा रखी
27. फ्रांसीसियों ने बंगाल में चंद्र नगर की प्रसिद्धि कोठी 1690-92 में बनाई
28. 1731 ईस्वी में फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले की नियुक्ति हुई
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